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लेखनी कविता -06-Apr-2022

तरीका यह गुनाह का, बड़ा अनमोल रखा है,

यह निगाहें ही क़ातिल हैं, जिन्हें खोल रखा है।


न जाने कब चुपके से यह तीर चला जाती है,

अच्छे खासे इंसान को दीवाना बना जाती हैं।


उन क़ातिल निगाहों को याद कर यूं खो जाते हैं,

चाय पीना भूल कर हम मदहोश से हो जाते हैं।


सुराहीदार गर्दन और ऊपर से यह काला तिल,

मधुर मुस्कान को याद कर बेकाबू हो गया दिल।


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6 Comments

Anam ansari

07-Apr-2022 07:38 PM

बहुत अच्छा लिखा है

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Seema Priyadarshini sahay

07-Apr-2022 02:54 PM

वाह वाह बहुत खूब

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Abhinav ji

07-Apr-2022 08:13 AM

Very nice👍

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